भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

'विश्वास' / रेखा राजवंशी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

किसी पत्थर पर गीत खोद देना
उतना कठिन नहीं
जितना कठिन
'विश्वास' इस शब्द को जमा देना।

पत्थर गनीमत है, पत्थर है
इंसा न हुआ
जो है, कम से कम
वह तो कहलाता है
पर आदमी वक्त पलटे
तो पलट जाता है
खुद ही पत्थर में
बदल जाता है

भला है
जो पत्थर पे चोट लगे
तो दो टुकड़े हो जाते हैं
परन्तु फिर भी वह
द्रव्य नहीं बनता
वह जो है, वही रहता है

पर आदमी
सत्य की चोट सहने पर
वह नहीं रह पाता
या तो आंसू में बदल जाता है
या प्रतिकार की
भीषण अग्नि में जलकर
दूसरों के दो टुकड़े करने पर
आमादा हो जाता है

गनीमत है मेरे दोस्त
तुमने मुझे
सत्य की खोज में
असत्य के दायरे में ही बाँधा है
वर्ना तो सुना है
अविश्वास वह भीषण स्थिति है
जहाँ से प्रतिकार का जन्म होता है
और प्रतिकार वह कुल्हाड़ी है
जो लगातार
दूसरों की जड़ें काटने के लिए
इस्तेमाल की जाती है

सच है मित्र
बहुत आसान है
रोपे हुए वृक्ष को काट देना
पर याद रखो
बंजर में बीज बोना
सबसे कठिन कार्य है

मेरे दोस्त
किसी पत्थर पर गीत खोद देना
उतना कठिन नहीं
जितना कठिन
आदमी के ह्रदय में
विश्वास इस शब्द को जमा देना