Last modified on 15 फ़रवरी 2010, at 10:12

'सौदा' गिरफ़्ता-दिल को न लाओ सुख़न के बीच / सौदा

'सौदा' गिरफ़्ता-दिल को न लाओ सुख़न के बीच
जूँ-ग़ुँचा सौ ज़बान है उसके दहन के बीच

पानी हो बह गये मिरे आज़ा नयन की राह
बाक़ी है जूँ-हुबाब नफ़स पैरहन के बीच

जिनने न देखी हो शफ़क़े-सुब्ह की बहार
आकर तेरे शहीद को देखे कफ़न के बीच

वो ख़ारे-सुर्ख़-रू नहीं अहले-जुनूँ के पास
पाबोस को मिरी जो न पहुँचा हो बन के बीच

आतिशकदे में देख कि शोला है बेक़रार
आराम दिलजलों को नहीं है वतन के बीच

बाद-अज़-शबाब हों तिरी अँखियाँ ज़ियादा मस्त
होता है ज़ोरे-कैफ़ शराबे-कुहन के बीच

'सौदा' मैं अपने यार से चाहा कि कुछ कहूँ
वैसी की इक निगह कि रही मन की मन के बीच

शब्दार्थ:
 सुख़न = बातचीत ;जूँ-ग़ुँचा = कली की तरह ;दहन = मुँह ;आज़ा = अंग ;जूँ-हुबाब = बुलबुले की तरह ;नफ़स = साँस ;पैरहन = वस्त्र ;शफ़क़े-सुब्ह = उषा ;ख़ारे-सुर्ख़-रू = लाल हो चुका काँटा; पाबोस = पाँव चूमने के लिए ;बाद-अज़-शबाब = जवानी आने के बाद ;ज़ोरे-कैफ़ = मस्ती का ज़ोर ;शराबे-कुहन = पुरानी शराब