'सौदा' गिरफ़्ता-दिल को न लाओ सुख़न के बीच / सौदा
'सौदा' गिरफ़्ता-दिल को न लाओ सुख़न के बीच
जूँ-ग़ुँचा सौ ज़बान है उसके दहन के बीच
पानी हो बह गये मिरे आज़ा नयन की राह
बाक़ी है जूँ-हुबाब नफ़स पैरहन के बीच
जिनने न देखी हो शफ़क़े-सुब्ह की बहार
आकर तेरे शहीद को देखे कफ़न के बीच
वो ख़ारे-सुर्ख़-रू नहीं अहले-जुनूँ के पास
पाबोस को मिरी जो न पहुँचा हो बन के बीच
आतिशकदे में देख कि शोला है बेक़रार
आराम दिलजलों को नहीं है वतन के बीच
बाद-अज़-शबाब हों तिरी अँखियाँ ज़ियादा मस्त
होता है ज़ोरे-कैफ़ शराबे-कुहन के बीच
'सौदा' मैं अपने यार से चाहा कि कुछ कहूँ
वैसी की इक निगह कि रही मन की मन के बीच
शब्दार्थ:
सुख़न = बातचीत ;जूँ-ग़ुँचा = कली की तरह ;दहन = मुँह ;आज़ा = अंग ;जूँ-हुबाब = बुलबुले की तरह ;नफ़स = साँस ;पैरहन = वस्त्र ;शफ़क़े-सुब्ह = उषा ;ख़ारे-सुर्ख़-रू = लाल हो चुका काँटा; पाबोस = पाँव चूमने के लिए ;बाद-अज़-शबाब = जवानी आने के बाद ;ज़ोरे-कैफ़ = मस्ती का ज़ोर ;शराबे-कुहन = पुरानी शराब