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`दहलीज' चित्र -१/रमा द्विवेदी
Kavita Kosh से
बेटियों के लिए
एक दहलीज से,
दूसरे दहलीज तक का,
फासला तै करने में,
सदियां बीत जाती हैं,
उस दहलीज को अपना बनाने में
और सच तो यह है कि,
ज़िन्दगी बेमानी सी लगती है
क्योंकि कभी-कभी-
हम उस दहलीज के बन भी नहीं पाते??