भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
`रेखाओं’ क्षणिकाएँ-2/रमा द्विवेदी
Kavita Kosh से
६- एक लक्ष्मण रेखा,
क्या लांघी?
सीता हरण हो गया,
भयंकर राम-रावण युद्ध,
एक युग का अन्त।
७-रेखाओं का जाल,
उलझती जीवन शैली
का मापदंड।
८- समानान्तर रेखाएँ
किसी को काटती नहीं,
इसलिए जीवन का बीजगणित,
अर्थवान हो उठता है।
९- मेहनत!
भाग्य रेखाओं को,
नया मोड़ दे देती है।
१०- जीवन का समीकरण,
सिर्फ
भाग्य रेखाओं से नहीं बनता।