अँगूठा / पवन करण
हाथों की उँगलियों के सहारे हमेशा
नोटों की गिनती करते रहना
अँगूठे की यह आदत मुझे कतई पसंद नहीं
मुझे पसंद नहीं कि कोई इसको
मानव इतिहास की किसी
महान संघर्ष-गाथा के
किसी महानायक का
उठा हुआ अँगूठा कहकर करे प्रदर्शित
आँखों के सामने बार-बार
आ खड़ा होता
यह चमकदार छद्म
मुझसे अब और नहीं होता सहन
गुस्से में तनती हुई मुट्ठी को
विकलाँग बनाता
यह उठा हुआ अँगूठा
किसी की पहचान नहीं हो सकता
क्षत-विक्षत उँगलियाँ ही नहीं
उन अँगूठों को तो इतिहास भी
अपना नहीं मानता
जो सारी दुनिया की एक जैसी बहियों के
ब्याज चढ़ते पन्नों से आकर बाहर
साहूकारों की काली दुनिया के ख़िलाफ़
कुछ नहीं कहते
और वहाँ गुर्राते हुए राष्ट्राध्यक्ष के आगे
कुछ मिमियाते हुए राष्ट्राध्यक्ष
इसे काग़ज़ पर बिना सोचे लगा रहे हैं