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अँग मोरा काँपैे गहन जकताँ, डँरवा चिल्हिकि मारै हे / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

प्रसव-वेदना से जच्चा बेचैन है। सास-ननद और देवर अन्यत्र हैं। वह चेरी को बुलाकर अपने पति को खबर देती है। उसका पति आता है। समाचार पूछकर अपनी माँ को मनाने जाता है। माँ आने को तैयार नहीं है; क्योंकि उसे अपनी बहू की बातेॅ सह्य नहीं होतीं। फिर, किसी तरह मानती है। सौरगृह में प्रवेश करते ही वह बच्चे को देखकर समय पर अनुपस्थित रहने के लिए पश्चाताप करने लगती है। लेकिन, बहू ऐसे अवसर पर उसे अपमानित करने से भी बाज नहीं आती। सास-बहू का मतभेद नया नहीं, पुराना है। सास अपने पोते को देखकर सारा विरोध भूल जाती है, लेकिन बहू, जिसे अभी-अभी प्रसव वेदना से मुक्ति मिली है, उस अवसर पर सान्त्वना और सहायता के लिए सास के उपस्थित नहीं रहने के कारण उसका विरोध तो और बढ़ गया है। साथ ही अब तो वह मातृत्व के गर्व से भी अपने को गौरवान्वित समझती है।

अँग मोरा काँपे गहन<ref>एक रोग, जिसमें देह कांपती है, यथा ‘गहन पेरू’। ग्रहण के समय चंद्रमा का कांपना</ref> जकताँ<ref>जैसा</ref>, डँरवा चिल्हिकि<ref>रह-रहकर तेज दर्द होना</ref> मारे हे।
ललना, मारै पँजरवा में टीस, कि केहि<ref>किसे</ref> क जगायब हे॥1॥
सासु मोरा सूतै अटरिया, ननद गज<ref>ऊपर के महल में; दुमहले पर</ref> ऊपर हे।
ललना रे, देवरा मोरा देवनरायन, कि केहि क जगाएब हे॥2॥
अँगना बोहारैत<ref>बुहारती हुई</ref> चेरिया छिकें, औरो नौरिया भला<ref>अनुनयात्मक अव्यय</ref> हे।
ललना रे, राजा आगु खबरी जनाबहऽ, कि दगरिन चाहिय हे॥3॥
जुअवा खेलैतेॅ राजा बेल तर, औरो चनन तर हे।
ललना, तोरो धनि दरदे बेयाकुल, कि दग रिन चाहिय हे॥4॥
जुअवा नेरौलन<ref>छितरा दिया; बिखेर दिया</ref> राजा बेल तर, औरो चनन तर हे।
ललना रे, धाबि<ref>दौड़कर</ref> क पैसल<ref>घुसे; भीतर गये</ref> घर भीतर, कहु धनि कूसल हे॥5॥
अँग मोरा काँपै गहन जकताँ, डँरवा चिल्हिकि मारे हे।
ललनारे, धरती बुझै असमान, किए रे कहु कूसल हे॥6॥
एतना बचन राजा सुनलन, कि मने मुसकैलन हे।
ललना, घोड़ा पीठी भेलन असबार, माय मनावन हे॥7॥
ओढू अम्माँ साल दोसाल<ref>ऊनी शाल; चादर</ref>, कि दोपटा त ओढ़िअउ<ref>ओढ़िए</ref> हे।
ललना, घोड़ा पीठी होउ असबार, दरोगा त हमैं बूझौ<ref>मैं तुम्हें दरोगा की तरह बड़ा और रोबदार समझता हूँ</ref> हे॥8॥
नै<ref>नहीं</ref> ओढ़ब साल दोसाल, कि दोपटा त नै ओढ़ब हे।
ललना रे, तोरि धनि क बोली न सोहाय हुआँ<ref>वहाँ</ref> रे कैसे जायब हे॥9॥
एक गोर<ref>गोड़, पैर</ref> दिहल<ref>दिया</ref> देहरिया<ref>देहरी पर</ref>, दोसरो घर भीतर हे।
ललना, तेसरे में बबुआ जलम लेल, धरती अनंद भेल हे॥10॥
चनन छेबिए<ref>काट-छाँटकर, छील-छालकर</ref> छेबि पसवो<ref>पासँग, गर्भगृह या प्रसव-गृह के द्वार पर जलने वाली लकड़ी</ref> निहारती<ref>देखती</ref> हे, जीरवा बोरसी<ref>अंगीठी</ref> भरैतीं हे।
ललना रे, देवता अरोधहुँ<ref>देवता की पूजा</ref> न पएली, कि बबुआ घर जलमल हे॥11॥
सोइरी से बोलथिन कासिला रानी, औरो गरभ<ref>गर्व से</ref> सेॅ हे।
बबुआ, मामा<ref>दादी</ref> के देहुन धकिआइ<ref>धक्का देकर निकाल दो</ref>, केहनि फूटि जैतेन<ref>फूट जायेगा</ref> कि ठेहुनि<ref>घुटना</ref> फुटि जैतेन हे।
दरद बेर<ref>दर्द के समय</ref> न आएल हे॥12॥

शब्दार्थ
<references/>