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अँधेरा यहाँ हर तरफ छा रहा है / रंजना वर्मा
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अँधेरा यहाँ हर तरफ छा रहा।
है दिलों को मगर कोई भरमा रहा॥
समय इस तरह करवटें है बदलता
कि जैसे कोई जलजला आ रहा है॥
जरा अपना दामन उठा कर तो देखो
कहीं कोई दुश्मन छुपा जा रहा है॥
कभी चाँद पर तुम भरोसा न करना
वो अब चाँदनी पर सितम ढा रहा है॥
संभल कर चलो दौर है मुश्किलों का
कि खुदगर्जियों का चलन भा रहा है॥
जले जंगलों की न चिंता किसी को
पपीहा कहीं दूर पर गा रहा है॥
ना तरु डाल कोई न छाया कहीं पर
तपन आग बन देह झुलसा रहा है॥।