अँधेरे चंद लोगों का अगर मक़सद नहीं होते / द्विजेन्द्र 'द्विज'

अँधेरे चंद लोगों का अगर मक़सद नहीं होते

यहाँ के लोग अपने आप में सरहद नहीं होते


न भूलो, तुमने ये ऊँचाईयाँ भी हमसे छीनी हैं

हमारा क़द नहीं लेते तो आदमक़द नहीं होते


फ़रेबों की कहानी है तुम्हारे मापदण्डों में

वगरना हर जगह बौने कभी अंगद नहीं होते


तुम्हारी यह इमारत रोक पाएगी हमें कब तक

वहाँ भी तो बसेरे हैं जहाँ गुम्बद नहीं होते


चले हैं घर से तो फिर धूप से भी जूझना होगा

सफ़र में हर जगह सुन्दर— घने बरगद नही होते

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