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अँधेरों की सियाही को तुम्हें धोने नहीं देंगे / द्विजेन्द्र 'द्विज'
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अँधेरों की सियाही को तुम्हें धोने नहीं देंगे
भले लोगो! ये सूरज रौशनी होने नहीं देंगे
तुम्हारे आँसुओं को सोख लेगी आग दहशत की
तुम्हें पत्थर बना देंगे, तुमें रोने नहीं देंगे
सुरंगें बिछ गईं रस्तों में, खेतों में, यहाँ अब तो
तुम्हें वो बीज भी आराम से बोने नहीं देंगे
घड़ी भर के लिए जो नींद मानो मोल भी ले ली
भयानक ख़्वाब तुमको चैन से सोने नहीं देंगे
जमीं हैं हर गली में ख़ून की देखो, कई परतें
मगर दंगे कभी इनको तुम्हें धोने नहीं देंगे
अभी ‘द्विज’ ! वक़्त है रुख़ आस्थाओं के बदलने का
यहाँ मासूम सपने वो तुम्हें बोने नहीं देंगे