भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अंको का गीत / सुरेश कुमार मिश्रा 'उरतृप्त'
Kavita Kosh से
एक है, एक है
दुनिया सारी एक है।
दो हैं, दो हैं
हमारी आंखें दो हैं।
तीन हैं, तीन हैं
झंडे के रंग तीन हैं।
चार हैं, चार हैं
कार के पहिए चार हैं।
पांच हैं, पांच हैं
हाथ की उंगलियाँ पाँच हैं।
छह हैं, छह हैं
ऋतुएँ सारी छह हैं।
सात है, सात हैं
सप्ताह के दिन सात हैं।
आठ हैं, आठ हैं
दिशाएँ सारी आठ हैं।
नौ हैं, नौ हैं
रत्न सारे नौ हैं।
दस हैं, दस हैं
रावण के सिर दस हैं।