अंगिका बुझौवल / भाग - 4
माटी रोॅ घोड़ा माटी रोॅ लगाम
ओकरा पर चढ़ेॅ खुदबुदिया जुआन
भात
करिया जीन लाल घोड़ा
चढ़ेॅ उतरेॅ सिपाही गोरा।
तबा, आग, रोटी
भरलोॅ पोखरी में चान गरगराय।
घी से भरी कड़ाही में पूआ
भरलोॅ पोखरी में टिटही नाँचै।
बालू से भरी खपड़ी में भूजा
टुपटाप करै छैं, कपार कैन्हें फोड़ै छैं
नेङा ऐसन डेङा तोहें रात कैन्हें चलै छैं।
साँप महुआ से ‘’ टुपटाप करते हो, महुआ गिराते हो,
और सर क्यों फोड़ते हो।‘’
महुआ, तुम ऐसे नंगधड़ंग रात को क्यों चलते हो ?
फूलफूल मखचन्नोॅ के फूल
पैन्हें छिमड़ी तबेॅ फूल।
दिया की बत्ती और लौ
एक सङ दू साथी रहै
एक चललै एक सूती रहलै
तैयो ओकरोॅ साथ नै छुटलै।
चक्की के दोनों पल्ले
यहाँ, महाँ, कहाँ, छोॅ गोड़ दू बाँहाँ
पीठी पर जे नाङड़ नाचेॅ से तमासा कहाँ ?
तराजू ६ डोरियाँ, दो पलरे और डंडी पर पूँछ जैसी मूँठ
चलै में लचपच, बैठै में चक्का
हाथ नै गोड़ नै मारै लचक्का।
साँप
पानी में निसदिन रहेॅ
जेकरा हाड़ नै माँस
काम करेॅ तरुआर के
फिनु पानी में बाँस।
जोंक
फूलेॅ नै फरेॅ
सूप भरी झरेॅ।
बोहाड़न
एक गाँव में ऐसनोॅ देखलौं बन्नर दूहेॅ गाय
छाली काटी बीगी दियेॅ, दूध लियेॅ लटकाय।
पासी, ताड़खजूर का पेड़, ताड़ी
एक टा फूल छियत्तर बतिया।
केले की खानी
पानी काँपै, कुइयाँ काँपै
पानी में कटोरा काँपै
चाँद
लाल गाय खोॅर खाय
पानी पीयेॅ मरी जाय।
आग
ऊपर सें गिरलै धामधूम
धुम्मा रे तोहरोॅ माथा सूंघ।
ताड़
हिन्हौ नद्दी, हुन्हौ नद्दी
बीच में हवेली
हवेली करेॅ डगमग
माँग अधेली।
नाव