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अंगिका रामायण / पाँचवा सर्ग / भाग 5 / विजेता मुद्‍गलपुरी

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अग्नि तत्व ‘र’ छिक, त ‘आ’ छै कामधेनु जकाँ
‘म’ छिक सूरज तत्व श्रुति-संत गाय छै।
चन्द्र के समान अनुनासिक छै ‘म’ वरण
प्राणी के रोॅ मन के जे शीतल बनाय छै।
राम एक ध्वनि छिक गुँजैत अनन्त बीच
जेकरा से साधक अनन्त सुख पाय छै।
शुन्य के रोॅ साधक के हिय से निकसि नाद
विकसि केॅ बहेॅ नादब्रह्म बनी जाय छै॥41॥

सवैया -

राम रमै सब के हिय में
जड़-चेतन में प्रभु राम कहावै।
राम छिकै इक बीज जकाँ
हिय में इक कल्पतरू उपजावै।
राम छिकै जग कारक-तारक
सच्चिदानन्द स्वरूप कहावै।
सास्वत सत्य सनातन राम के
वेद अनादि-अनन्त बतावै॥1॥

कण-कण में रमण करै वाला राम छिक
जौने कि आनन्द के रोॅ सागर कहाय छै।
वहेॅ राम योगी के रोॅ साँसोॅ में रमण करै
तहाँ जीव ब्रह्म दोनों एक बनी जाय छै।
राम के अगिनी तत्व तप के तपानै वाला
सूर्य तत्व साधक के जोत बनी जाय छै।
चन्द्र तत्व मन-वाणी-चित्त सब शान्त राखै
राम सुमिरतें ही समाधि लगि जाय छै॥42॥

विश्व के भरण आरू पोषण करत जौने
बालक के नाम ऋषि भरत रखलका।
सब शुभ लक्षण बिचारी क वशिष्ट मुनि
राम के अनुज लक्षमण नाम धैलका।
लक्ष आरो मन दोनों एक दिश राखै वाला
कुल गुरू राम अनुरागी बतलैलका।
जिनका सुमरि सब शत्रु के दमन होत
उनकर नाम सत्रुधन बतलैलका॥43॥

सोरठा -

परमानन्द अपार, पाय भेल दशरथ मगन।
सोहै सब घर द्वार, कवि उपमा नहि कहि सकै॥4॥

बोलल वशिष्ट मुनि, राजा तोरोॅ चारो पुत्र
जानि लेॅ कि चारो, चारो वेद के समान छै।
मुनि मन भावै वाला, जग हरसावै वाला
धरम के धूरी आरो शिव के रोॅ प्राण छै।
चन्द्रमा समान साफ-शीतल वचन मन
स्वरूप लुभावन मोहक मुस्कान छै।
माया से रहित, मायापति के रोॅ माया जानोॅ
पलना में झुलैत अनन्त भगवान छै॥44॥

माता चारो पूत के रोॅ नजर निहुछि राखै
चारो पुत्र शील-गुण-रूप के रोॅ धाम छै।
किलकारी-क्रन्दन दोनों ही अदभुत लागै
सुख के समुन्दर प्रकट प्रभु राम छै।
कखनो त गोद कभी पलना में झूलै हरि
नख-सिख शोभा सुखप्रद अभिराम छै।
मुख कोटि काम सन शोभित अजान बाहु
होठ तिलकोर, तन मेघ सन श्याम छै॥46॥

नुपुर के ध्वनि सुनि मोहल मुनि के मन
कमर में करधनी अधिक सुहावै छै।
गोरोॅ-गोरोॅ गाल, सिर पर घुंघरैलोॅ बाल
तीतरोॅ मधुर बोल जिया ललचावै छै।
जिनकर रूप-गुण के न कोनो पार पावै
जिनका कि शेष भी अशेष बतलावै छै।
घुरूकि-घुरूकि चलै केहुनी के बल जब
देखि-देखि तीनों माता अति सुख पावै छै॥46॥

एक दिन राम जी के नहावी-सोनावी माता
करि केॅ शृंगार ठोकि-ठोकि केॅ सुतैलकी।
अपने चलल गेली कुलदेवी पूजै लेली
कुलदेवी पूजी हुन्हीं नैवेद चढ़ैलकी।
पलटि केॅ गेली माता कौशल्या रसोई घर
फेरो पूजाघर हुन्हीं आवी क देखलकी।
जहाँ पे बालक राम नैवेद के पान करै
ई रहस्य माता कुछ समझी न पैलकी॥47॥

अचरज भरी माता गेली शिशु के समीप
पलना में सूतल जहाँ कि प्रभु राम छै।
फेरो माता लौटली सहमली पूजन गृह
देखि क चकित भेली शिशु दोना ठाम छै।
यहाँ-वहाँ दोनो ठाम बालक विलोकी माता
सोचलकि आजू केना बुद्धि भेल वाम छै।
भयभीत भेली माता निज मति भ्रम जानी
फेर ऐली जहाँ कि सूतल पुत्र राम छै॥48॥

दोहा -

मुद्गल लीला राम के, चकित भेल लखि माय।
सच सपना जकतें लगल, देखल नै पतियाय॥6॥

बुझलन राम जी माता के घवरैलोॅ होलोॅ
पलना पे परल-परल मुसकैलका।
फेरो राम माता के रोॅ पुत्रमोह नाशै लेली
अद्भुत-अखण्ड विराट रूप धैलका।
अगणित सूर्य-चन्द्र, शिव-ब्रह्म, नदी-नद
पर्वत-समुद्र-धरा अनन्त देखैलका।
जौने-जौने चीज कभी देखने न छेली माता
राम अपनोॅ में समाहित देखलैलका॥49॥

हरि के समक्ष माय बनल विनित जका
देखलन माया केना जीव के नचावै छै।
केना क भगति दिलवावै छै जीवोॅ के मुक्ति
केना-केना रमापति जगत चलावै छै।
देखि क कौशल्या जी के चेहरा अवाक भेल
कौशल्या सादर शीश आपनोॅ झुकावै छै।
माता के चकित देखि, हरि शिशु रूप भेल
वहॅे बाल रूप जौने मुनि मन भावै छै॥50॥