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अंतरिक्ष में अभी सो रही है / जयशंकर प्रसाद
Kavita Kosh से
अंतरिक्ष में अभी सो रही है उषा मधुबाला ,
अरे खुली भी अभी नहीं तो प्राची की मधुशाला .
सोता तारक-किरन-पुलक रोमावली मलयज वात,
लेते अंगराई नीड़ों में अलस विहंग मृदु गात ,
रजनि रानी की बिखरी है म्लान कुसुम की माला,
अरे भिखारी! तू चल पड़ता लेकर टुटा प्याला .
गूंज उठी तेरी पुकार- 'कुछ मुझको भी दे देना-
कन-कन बिखरा विभव दान कर अपना यश ले लेना.'
दुख-सुख के दोनों डग भरता वहन कर रहा गात,
जीवन का दिन पथ चलने में कर देगा तू रात ,
तू बढ़ जाता अरे अकिंचन,छोड़ करुण स्वर अपना ,
सोने वाले जग कर देंखें अपने सुख का सपना .