भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अंतरिख रा बटाऊ / कन्हैया लाल सेठिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोनी कर सक्यो
कम
अंतरिख में
गयोड़ै
मिनखां रो आकर्षण !
लूखा डूंगर
सूखा समदर
निरजीव धरातळ
न पून न पाणी
कोनी कोस सकी
ऐ जाणकारयां
बीं रा विशेषण,
बो तो
बो ही रसेश
करै रस वर्षण
लागै फाल
फळै फळ
हुवै संजीवण
कण कण
करै देख‘र
जायोड़ै नैहर
रतनाकर
चुगै अंगारा
मोबी चकोर
मान‘र सुधाकर
अडीकै
शरद री पून्यूं नै
देखणियां ताज
लागै
अभी च्यानणी में
सैंदेही मुमताज
करा दै चीत
धोळै दोपारां
चांद नै
गोल मटोळ चैरो
कोनी भुजाण सकै
कुदरत री सांच नै
सपनां री बैरी
विग्यान रो
पगफेरो !