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अंदोह से हुई न रिहाई तमाम शब / मीर तक़ी 'मीर'
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अंदोह से<ref>दु:ख
</ref> हुई न रिहाई तमाम शब<ref>सारी रात </ref>
मुझ दिल-जले को नींद न आई तमाम शब
चमक चली गई थी सितारों की सुबह तक,
की आस्माँ से दीदा-बराई तमाम शब।
जब मैंने शुरू क़िस्सा किया आँखें खोल दीं,
यक़ीनी थी मुझ को चश्म-नुमाई तमाम शब
वक़्त-ए-सियाह<ref>काले अर्थात बुरे समय </ref> ने देर में कल यावरी-<ref>सहायता, मदद
</ref>> सी की,
थी दुश्मनों से इन की लड़ाई तमाम शब
तारे से तेरी पलकों पे क़तरे अश्क के,
दे रहे हैं "मीर" दिखाई तमाम शब
शब्दार्थ
<references/>