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अंधकार / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
शीत युद्ध से समस्त विश्व त्रास्त
हो रहा मनुष्य भय विमोह ग्रस्त !
डगमगा रही निरीह नीति-नाव
जल अथाह, नष्ट पाल-बंधु-भाव !
राष्ट्र द्वेष की भरे अशेष दाह
मित्रता प्रसार की निबद्ध राह !
मच रही अजीब अंध शस्त्र-होड़
पशु बना मनुज विचार-शक्ति छोड़ !
जन-विनाश चक्र चल रहा दुरंत
आज साधु-सभ्यता विहान अंत !
गूँजते चतुर्दिशा कठोर बोल
रम्य-शांति-राग का रहा न मोल !
एकता-सितार तार छिन्न-भिन्न !
हर दिशा उदास मूक खिन्न-खिन्न !
अस्त सूर्य, प्राण वेदना अपार
अंधकार, अंधकार, अधंकार !