भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अंधा कुआँ / जयप्रकाश मानस

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुएँ में पानी नहीं था पर वह था लबालब
जब तक वह रहा
पानी भरा रहा गाँव भर में

उसके करीब जाओ तो
मिट्टी की मीठी बोली सुनाई देती
माँओं, बहनों की कथाएँ याद आने लगतीं यक-ब-यक
गीत गाते लोग झिलमिला उठते रंग-बिरंगे परिधानों में
अब उसकी जगह नल रुक-रुककर निथरता रहता है
सिर्फ़ इतना ही नहीं
निथर चुका है अब गाँव भर का उल्लास