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अंधेरे से प्रतिबद्ध ये लोग / कौशल किशोर
Kavita Kosh से
दिन के उजाले में
वे अपने हाथों की हथेलियां
रगड़.रगड़
उन पर लगे खून के धब्बे
छुड़ाने में व्यस्त हैं
और मस्त हैं कि
उन्होंने एक बहुत बड़ी जंग जीत ली है
वे मस्त हैं कि
उन्होंने हत्यारों को उनके किये की
माकूल सजा दी है
इस तरह वे गर्म हैं
कहीं कालापन नहीं रहा
रोशनी है हर जगह
बड़े इत्मीनान से वे जम्हाई लेते हैं
हर सुबह गुनगुनी धूप का मजा
अन्धेरे से प्रतिबद्ध ये लोग
दुहाइयों के नाम पर
अपने ताज की असलियत
छिपा रखना चाहते हैं
नयी.नयी परिभाषाएं गढ़कर
नकाबें बदल कर
नये.नये अन्दाज से
अन्धेरे को पहली या
दूसरी आजादी नाम देते हुए
अपने फन में इस कदर माहिर हैं कि
धोखा और धूर्तता
सारे देश में राज करती है।