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अंधे बादल / केदारनाथ अग्रवाल

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बिना आँख के
अंधे बादल
आसमान में चढ़े चले जा रहे-
चले जा रहे एक-दूसरे को पछियाए :
धरती उनको
खींच न पाई-नीचे अपने पास न लाई,
असफल हुआ गुरुत्वाकर्षण;
बेपानी है
पानी की रितु,
बूँद-बूँद के लिए
धरातल में गोहार है

रचनाकाल: २२-०६-१९७३