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अइसन बतास आइल, बरगद रहल बा डोल / प्रेमचन्द पाण्डेय
Kavita Kosh से
अइसन बतास आइल, बरगद रहल बा डोल,
रेंड़ी के गाछ बइसल इतरा रहल बा लोग।
भ्रष्ट आचरण के खराब मत कहीं,
रिश्वत पर देश के जहाँ चला रहल बा लोग।
नीति, ज्ञान, त्याग सब, ताक पर रहल,
झूठ, छल, फरेब सब, अपना रहल बा लोग।
पूजा, नमाज, रोजा से तौबा भइल बा आज,
झंडा उठा के हाथ में, आगे भइल बा लोग।
कंस हर समाज में, बाटे जमा के पाँव,
देवकी के हाल देख के मुस्का रहल बा लोग।
शकुनि अस मामा के बा स्वागत पर बड़ा जोर,
द्रौपदी के साड़ी सामने, खिंचवा रहल बा लोग।
दुर्योधन ताल ठोकि के ठठा रहल बा रोज,
धर्मराज पास से अब जा रहल बा लोग।
ईमान-धरम-ममता से बा ना वास्ता,
मंदिर-मस्जिद के बात पर, पागल भइल बा लोग।