अकाल पीड़ित / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो
साल भरी रहलै बाँझ अकाश
साल भरी बहलैरौद-बतास
धरती के जे फाटलै बूक
तड़पी-तड़पी मरलै चास।
भूख उठै छै ताबड़-तोड़
खाय छै पेटें खाली मरोड़
केना बतैभौं सबटा बात
जिनगीं देखलक कत्तेॅ मोड़?
कहियो-कहियो देखलाँ भात
बेसी रहलोॅ छुच्छे पात
सभे परैलोॅ-सत्तू-साग
एक्के बजराँ राखलक जात।
दू कौड़ी नै आदमीक मोल
उपजा-बारी होने गोल
लोक-लाज सब चकनाचूर
आपन्हैं आपनोॅ खोलोॅ पोल।
एक्के चिन्ता हाय रे पेट
अजगुत भैया तोरो लपेट
जानलाँ तोंहीं जिनगिक सार
पड़लोॅ ऐसकाँ एन्होॅ चपेट।
कोय दाता कोय दैव महान
आबोॅ-आबोॅ कृपा-निधान
जल्दी हमरोॅ करोॅ उधार
उड़लोॅ जाय छेॅ भुखें परान।
सूखी रल्छेॅ कंठ कठोर
पीबी चुकलाँ सबटा लोर
बढ़ले जाय छै तयो पियास।
आबी देखैबोॅ पानिक छोर।
जरियो जों छौं दया-दरेस
आबी मिटैबोॅ दुसह कलेश
नै तेॅ मानवता केॅ आय
जाय लेॅ पड़तै दोसरोॅ देश।