भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अकाल राहत (1) / मदन गोपाल लढ़ा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


सरबती खुश है
इस पखवाड़े
ग्रामसेवक ने लिख दिया है
मस्टर-रोल में उसका नाम।

हवा की तेजी से बीतेंगे
ये पन्द्रह दिन
और उसके हाथ में होंगे
डेढ़ सौ रुपये नगद
साथ में
चार मण गेहूँ के कूपन।
बीते बरस भी
अकेली सरबती ने
ढेरी लगाई थी
सात क्विटंल गेहूँ की
चार सौ रुपयों के संग।

तीन महीने के जीव को जीते हुए
सरबती खुश है
इस बरस भी
जापे के खर्च
सासू की बीमारी और
धणी की दारू के जुगाड़ में
काम आएगी
उसकी मेहनत।