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अकाल राहत (1) / मदन गोपाल लढ़ा
Kavita Kosh से
सरबती खुश है
इस पखवाड़े
ग्रामसेवक ने लिख दिया है
मस्टर-रोल में उसका नाम।
हवा की तेजी से बीतेंगे
ये पन्द्रह दिन
और उसके हाथ में होंगे
डेढ़ सौ रुपये नगद
साथ में
चार मण गेहूँ के कूपन।
बीते बरस भी
अकेली सरबती ने
ढेरी लगाई थी
सात क्विटंल गेहूँ की
चार सौ रुपयों के संग।
तीन महीने के जीव को जीते हुए
सरबती खुश है
इस बरस भी
जापे के खर्च
सासू की बीमारी और
धणी की दारू के जुगाड़ में
काम आएगी
उसकी मेहनत।