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अकाल / जितराम पाठक
Kavita Kosh से
खेत के मुआर छिलातिया
जइसे छुरा से
कपार के बार छिलाला,
पइनि-अहरा-नहर
नेता लोग के बात लेखा
खाली बा
अकाल के उदन्त भँइसा
चरि गइल फसल,
किसान हाथ भींजता,
अब बेटी के गवना के नियार
फेरे के परी,
पेटो खातिर
कवनो साहू-हाकिम के
उटकेरे के परी,
धिया के लुगरी
अबकी अगहने झाँवर हो जाई,
ओकर सोनहुला रंग
अवरु साँवर हो जाई
दियरी के बाती,
छठि के अघरौटा
बिसुखि गइल
राकस नियन मुँह बवले
महँगी के काल आइल बा
अनेरे लोग कहता कि अकाल आइल बा।