अकेले / बालकृष्ण काबरा ’एतेश’ / माया एंजलो
पिछली रात
लेटे-लेटे सोचते हुए
कि कैसे पाऊँ अपने लिए एक ऐसा घर
जहाँ पानी न हो प्यासा
पाव रोटी न हो पत्थर
और निष्कर्ष पर पहुँचती हूँ मैं
और मुझे विश्वास है कि मैं नहीं हूँ ग़लत
कि कोई नहीं
हाँ, कोई भी नहीं
कर सकता है यहाँ निर्वाह अकेले।
अकेले, नितान्त अकेले
कोई नहीं, हाँ, कोई भी नहीं
कर सकता है यहाँ निर्वाह अकेले।
हैं यहाँ कुछ ऐसे लखपति
जो नहीं कर सकते हैं उपयोग पैसों का
उनकी पत्नियाँ भागती-फिरतीं चुड़ैलों की तरह
उनके बच्चे गाते उदास गाने
उनके पत्थर-हृदयों के इलाज के लिए
उनके डॉक्टर हैं महँगे।
हाँ, कोई नहीं,
जी हाँ, कोई भी नहीं
कर सकता है यहाँ निर्वाह अकेले।
अकेले, नितान्त अकेले
कोई नहीं, हाँ, कोई भी नहीं
कर सकता है यहाँ निर्वाह अकेले।
यदि अब आप ध्यान से सुनें
तो मैं बताऊँगी जो मुझे पता है –
हो रहे हैं एकत्र तूफ़ानी बादल
चलने को हैं आन्धियाँ
दुख भोग रही है मानव जाति
और मैं सुन सकती हूँ कराह,
क्योंकि कोई नहीं,
हाँ, कोई भी नहीं
कर सकता है यहाँ निर्वाह अकेले।
अकेले, नितान्त अकेले
कोई नहीं, हाँ, कोई भी नहीं
कर सकता है यहाँ निर्वाह अकेले।
मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : बालकृष्ण काबरा ’एतेश’