भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अक्कड़-बक्क्ड़... / रामकुमार कृषक
Kavita Kosh से
अक्कड़-बक्कड़ बम्बे बौ
अस्सी-नब्बे पूर सौ !
लाला जी की ये तुक-ताल
गुणा-भाग से मालामाल
लूटे हैं गुदड़ी के लाल
खिला खिसारी-साँवाँ-जौ !
उल्लू जगा सो गए आप
बन्द तिजौरी में कर पाप
कौवे करने लगे विलाप
फटते ही पूरब में पौ !
उठ-बैठ फिर पलथी मार
लछमी जी के पद चुचकार
बेइमानी का कर ब्यौपार
करती लगी-ठगी से लौ !
03.07.1985