भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अक्की-बक्की / सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
Kavita Kosh से
अक्की-बक्की करें तरक्की,
गेहूँ छोड़ के बोएँ मक्की।
मक्की लेकर भागें चक्की,
देखे बुढ़िया हक्की-बक्की
नक्की-झक्की पूरी शक्की!