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अख़बारों में असर नहीं है / विनोद तिवारी
Kavita Kosh से
अख़बारों में असर नहीं है
कोई अच्छी ख़बर नहीं है
शहर जुर्म का या मुजरिम का
‘भद्रलोक’ की गुज़र नहीं है
दुराचार की कथा-व्यथा से
एक अछूता नगर नहीं है
मंज़िल मिल पाए भी कैसे
सही दिशा में सफ़र नही है
आज आदमी ज़हरीला है
अब साँपों में ज़हर नहीं है
पर दुर्दिन भी मिट जाएँगे
कोई भी तो अमर नहीं है