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अगर तुम मुझे भूल जाओ / पाब्लो नेरूदा / उज्ज्वल भट्टाचार्य

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मैं चाहता हूँ तुम्हें पता हो
यह बात।

तुम्हें पता है बात कैसी है :
जब मैं
चमकते चाँद, या पतझड़ में
खिड़की के सामने शाखों को देखता हूँ,
 
अगर मैं
आग के नज़दीक
बुझी हुई राख
या झुलस चुके तने को छूता हूँ,

यह सब मुझे तुम्हारी ओर ले जाता है,
मानो कि सबकुछ
महक, रोशनी, हर चीज़
छोटी-छोटी नावें हैं
मुझे बहा ले जाती हैं
तुम्हारे टापू की ओर जिसे मेरा इन्तज़ार है।

बहरहाल,
अगर धीरे-धीरे तुम्हारा प्यार ख़त्म हो जाए
मेरा प्यार ख़त्म हो जाएगा धीरे-धीरे।
अगर अचानक
तुम मुझे भूल जाओ
मुझे मत खोजना,
मैं तुम्हें भूल चुका होऊँगा।

अगर तुम पागलों की तरह सोचती रहो
मेरी ज़िन्दगी से होकर
कितने परचम लहराए,
अगर तुम तय करती हो
मुझे दिल के उस तट पर छोड़ जाना
जहाँ मेरी जड़ें हैं,
याद रखना
उसी दिन
उसी घड़ी
अपनी बाँहें फैलाकर
अपनी जड़ों के साथ मैं निकल पड़ूँगा
किसी दूसरे मुल्क की ओर।

लेकिन
अगर हर दिन,
हर घड़ी,
तुम्हें यह अहसास हो कि तुम मेरी हो
अपनी मिठास के साथ,
अगर हर रोज़ तुम्हारे होठों पर
एक फूल खिलता रहे मुझे खोजते हुए,
मेरी प्रियतमा, मेरी अपनी,
मुझमें वह सारी आग कायम है,
कुछ भी बुझी नहीं, कुछ भी भूला नहीं,
तुम्हारा प्यार मेरे प्यार का बसेरा है, प्रियतमा,
ज़िन्दगी भर वह तुम्हारे आगोश में होगी
मुझे छोड़े बिना।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य