Last modified on 14 अगस्त 2018, at 10:33

अगर देखूँ तेरे अनुसार तो अच्छा नही लगता / नज़्म सुभाष

अगर देखूँ तेरे अनुसार तो अच्छा नही लगता
सहज ही आ मिले जो प्यार तो अच्छा नही लगता

अहिल्या को पुरुष ही शाप दे पत्थर बनाता है
पुरूष ही कर रहा उद्धार तो अच्छा नही लगता

पनीली आँख मे इक शून्य ठहरा हो तो अच्छा है
गरीबी यदि दिखे ख़ुद्दार तो अच्छा नही लगता

ख़ुदी बीमार हूँ तो एक तिनका भी नही उठता
मगर नौकर रहे बीमार तो अच्छा नही लगता

तुम्हारी बात थी इस वास्ते ख़ामोश हूं लेकिन
तुम्ही हमको कहो ग़द्दार तो अच्छा नही लगता

हमारी बादशाहत मे मनाही शब्द वर्जित है
करे कोई हमे इन्कार तो अच्छा नही लगता

लहू पीना मुसलसल है हमारी एक आदत -सी
सुनो, है आज मंगलवार तो अच्छा नहीं लगता

गुलाबों को मैं चूमूँ या मसल दूं है मेरी मर्जी
गवाही में खड़े हों ख़ार तो अच्छा नहीं लगता