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अगर हो सकते हमको ज्ञात / सुमित्रानंदन पंत
Kavita Kosh से
अगर हो सकते हमको ज्ञात
नियति के, प्रिये, रहस्य अपार,
जान सकते हम विधि का भेद,
विश्व में क्यों चिर हाहाकार!
चूर्ण कर जग का यह मृद् पात्र
उड़ा देते अनंत में धूल,
और फिर हम दोनों मिल, प्राण,
उसे गढ़ते उर के अनुकूल!