अगर हो सकते हमको ज्ञात
नियति के, प्रिये, रहस्य अपार,
जान सकते हम विधि का भेद,
विश्व में क्यों चिर हाहाकार!
चूर्ण कर जग का यह मृद् पात्र
उड़ा देते अनंत में धूल,
और फिर हम दोनों मिल, प्राण,
उसे गढ़ते उर के अनुकूल!
अगर हो सकते हमको ज्ञात
नियति के, प्रिये, रहस्य अपार,
जान सकते हम विधि का भेद,
विश्व में क्यों चिर हाहाकार!
चूर्ण कर जग का यह मृद् पात्र
उड़ा देते अनंत में धूल,
और फिर हम दोनों मिल, प्राण,
उसे गढ़ते उर के अनुकूल!