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अगवानी / नवनीत पाण्डे

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धरती पर उग रही है आंखें
दीवारों पर उतर कर कान
पसर गए हैं हवा में
पानी में से निकल कर चेहरे
ढूंढ रहे हैं
आसमान में अपनी धरती
कुछ दीपक
जलाकर अंधेरों की बातियां
कर रहे हैं हमारी अगवानी
"आइए चलें.."