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अगहन - २ / ऋतु-प्रिया / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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घनहन अगहन धनधन जीवन
झनझन बाजय धान
हाँसू हाथ कान्ह पर बहिङा
गावय मुदित किसान

भूखक धह-धह ज्वाला पजरल
कातिक विपति आबि सिर बजरल

बिसरल से दुख, पुलकित तनमन
सब जन एक समान
घनहन गहन धनधन जीवन
झन - झन बाजय धान

धन ऋतुराज हेमन्तक आङन
छीटल अछि घसि चानक चानन

सुरभित थल, प्रियगर लगइत छथि
तेँ दिनकर भगवान
घन हन अगहन धन - धन जीवन
झन - झन बाजय धान

शीतल कण नव दूबिक दल पर
अक्षत बनि लटकल चकमक कर

प्रकृति नटी दूवक्षित लय
करइत छथि ककर चुमान
घनहन अगहन धन-धन जीवन
झन - झन बाजय धान