भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अगहन - ३ / ऋतु-प्रिया / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सतावनक अगहन सबहक मुख कैलक आबि मलान
शून्य बाध, खरिहान शून्य अछि शून्ये पड़ल दलान

हाँसू पड़ल बिझायल मुरुछल
अवनिक नयन नोर कण छलकल

आइ न खोपड़ी सँ सुनि पड़इछ
मधुर पराती गान
सतावनक अगहन सबहक मुख कैलक आबि मलान

गभ्रहि तुइल शीश सब धानक
जे बहरायल से मुख चानक

टक-टक तकइत, फक-फक करइत
तेजय अपन परान
सतावनक अगहन सबहक मुख कैलक आबि मलान

स्वाती अबितहि पछबा रमकल
विपतिक घन मे बिजुरी चमकल
ठामहिं ठमकल जे गमकल छल
लाल सतरिया धान
सतावनक अगहन सब हक मुखकैलक आबि मलान

घरणिक छाती टूक-टूक अछि
मनक व्यथा तेँ मनहि मूक अछि
कोन चूक सँ हाथ ऊक लय
झरकाबथि भगवान
सतावनक अगहन सबहक मुख कैलक आबि मलान

की भगवान आइ छथि सूतल
जठरानल मे जरइछ भूतल
करक पड़त प्रायः बरखो भरि
सबकेँ देव - उठान
सतावनक अगहन सबहक मुख कैलक आबि मलान

आश छोड़ि बैसल अछि जनता
भावी केँ भगवानें जनता
बिजुली बम्मा सँ पटबय लय
कागत पर अछि ‘प्लान’
सतावनक अगहन सबहक मुख कैलक आबि मलान