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अग्गड़, मग्गड़, बग्गड़ बम / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
Kavita Kosh से
अग्गड़ मग्गड़ बग्गड़ बम,
नूनू खेलतैं होलै बेदम।
घरोॅ में चूल्हा-जांतोॅ खेलै
अलिया-मलिया झलिया खेलै,
सेल कबड्डी बाहर भागै
एक दोसरा केॅ पकड़ी ठेलै,
कोय्योॅ नै छै केकरोह से कम
अग्गड़ मग्गड़ बग्गड़ बम।
कानबोॅ सुनी दौड़लै माय
हाथोॅ में छेलै लाय-मिठाय,
धोपी माय कहलकै बड़का से
कैन्हेॅ कानै छोॅ छोटका भाय,
माय गिरै छौ ई धमधम-धम
अग्गड़ मग्गड़ बग्गड़ बम।
कबड्डी में राजा जे होलै
भागै में छूआइये गेलै,
हारै के दुख लाजोॅ से राजा
भोकरी-भोकरी कानै लगलै,
छोड़ोॅ कबड्डी भूलोॅ गम
अग्गड़ मग्गड़ बग्गड़ बम।