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अघोर तंत्र / मन्त्रेश्वर झा

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आबि गेल ‘घोर’ तंत्र, पसरल अघोर तंत्र
नष्ट भेल राजतंत्र, ‘सबल’ तंत्र पुष्ट भेल
आबि गेल ‘घोर’ तंत्र, पसरल अघोर तंत्र।
जीबि उठल चार्वाक, ऋणजीवी आम भेल
ग्लोवल धर्म चलल जखन सभक धर्म साफ भेल।
संबंधक बंध छुटल, बसुधैव कुटुंब लेल
अनुबंधक गंध मचल, झपताल छंद भेल।
पसरि गेल फोकतंत्र, पसरल अघोर तंत्र।
मंडन आयाचीसँ भरि गाँम अवशिष्ट भेल
चैके-चौक अस्त्र-शस्त्र, आसव पान इष्ट भेल
श्मशान साधना गामसँ शहर भेल, राजनीति जहर भेल
अधिकारी व्यापारी जखन जखन गिद्ध भेल
इजोते दिगा दानिस नव्य तंत्र सिद्ध भेल।
पशुहीन जंगलमे लोक जते बढ़ल गेल
चन्द्रमापर, मंगल पर लोक जते चढ़ल गेल
तते अपन माटि पानि धरती दूर छुटल गेल
तते बढ़ल घोर तंत्र, पसरल अघोर तंत्र।