भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अचानक मुलाक़ात / विस्साव शिम्बोर्स्का
Kavita Kosh से
कितने सभ्य तरीक़े से हम एक दूसरे से पेश आ रहे हैं;
कह रहे हैं, कैसा अद्भुत है इतने बरस के बाद अचानक यों मिलना।
हमारे बाघ अब सिर्फ़ दूध पीते हैं।
हमारे बाज़ ज़मीन पर टहलते हैं।
हमारी शार्क मछलियाँ पानी में डूब जाती हैं।
हमारे भेड़िए अब खुले जंगले के बाहर उबासी लेते हैं।
हमारे साँपों में अब वो बिजलियाँ नहीं रहीं,
हमारे बन्दर अपनी कल्पनाशीलता खो चुके हैं,
हमारे मयूरों के पंख झड़ चुके हैं।
हमारे बालों से चमगादड़ कभी के उड़ गए।
हम बीच वाक्य में चुप हो जाते हैं,
लाइलाज, मुस्कुराते हुए।
हमारे मनुष्यों के पास
कहने के लिए कुछ नहीं है।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : असद ज़ैदी