भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अच्छा जो ख़फ़ा हम से हो तुम ऐ सनम अच्छा / इब्ने इंशा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


अच्छा जो ख़फ़ा हम से हो तुम ऐ सनम अच्छा,
लो हम भी न बोलेंगे ख़ुदा की क़सम अच्छा|

मश्ग़ूल क्या चाहिए इस दिल को किसी तौर,
ले लेंगे ढूँढ और कोई यार हम अच्छा|

गर्मी ने कुछ आग और ही सीने में लगा दी,
हर तौर घरज़ आप से मिलना है कम अच्छा|

अग़ियार से करते हो मेरे सामने बातें,
मुझ पर ये लगे करने नया तुम सितम अच्छा|

कह कर गए आता हूँ, कोई दम में मैं तुम पास,
फिर दे चले कल की सी तरह मुझको दम अच्छा|

इस हस्ती-ए-मौहूम से मैं तंग हूँ "इंशा"|
वल्लाह के उस से दम अच्छा|