भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अच्छा लगने पर / नीरेन्द्रनाथ चक्रवर्ती

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अच्छा लगे तो ले सकते हो
न लगे तो मत लेना,
याद रखना
बिना मूल्य चुकाए
मैंने कुछ भी नहीं माँगा,
मैंने बिना रोए औरों को कभी नहीं रुलाया
मैंने अपनी रुलाई की क़ीमत पर रुलाई ख़रीदी है
सेवा की की़मत पर सेवा
प्यार की क़ीमत पर प्यार,
मैंने जो कुछ भी लिया
उसी से उसका दाम चुकाया है
प्रेम के लिए प्रेम
घृणा के लिए घृणा!

बच्चों के मुँह से टूटी-फूटी बातें सुनने के लिए
मुझे भी टूटी-फूटी भाषा में बातें करनी होती है,
दोस्त की आँखों में भरोसे की लौ जलाए रखने के लिए
मैं ख़ुद सारी रात जलते-जलते जागता रहा हूँ
तुम तो जानते ही हो
कि मैंने उजाले की क़ीमत उजाला ख़रीदा था,
मैं फिर एक बार क़ीमत चुकाने आया हूँ
दो कटोरी गेहूँ के बदले एक कटोरी चावल-प्राण,
अच्छा लगे तो तुम ले सकते हो
न लगे तो मत लेना

मूल बांग्ला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी