भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अच्छे दाम / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
खाली पेट, चाहता रोटी,
भरा पेट आराम।
किंतु बात यह सच है भाई,
हाथ चाहता काम।
लगे रहे अनवरत काम में,
उन्हें मिला है नाम।
श्रम के सीकर रंग बिरंगे,
बाक़ी काले श्याम।
मन में द्वेष भावना लेकर,
करो सड़क मत जाम।
पेड़ों की संख्या में क्या है,
मतलब तो है आम।
सही आंकलन भले बुरे का!
हमीं रहे नाकाम।
फल उसमें भी लगे रहे हैं,
क्यों खजूर बदनाम।
छोटे बड़े काम सब अच्छे,
रखो काम से काम।
श्रद्धा निष्ठा, कठिन परिश्रम,
देते अच्छे दाम।