अच्छे दिन आएँगे / कुँअर रवीन्द्र

अन्ततः मेरे बच्चे का आज निधन हो गया
जाति, धर्म, सम्प्रदाय और विचारधारा से लहुलुहान
भूख और प्यास से वह हार गया
मेरे आँसू उसे नहीं बचा सके
नहीं भर सके मेरे आँसू उसके घाव को
मेरे आँसू नहीं बुझा पाए उसकी प्यास

वत्स !
इस देश में रोज़ ही इस तरह मरने वाले बच्चों को
उनके माँ-बाप के आँसू नहीं बचा पाते
मरने वाले वे सब बेनाम होते हैं
इतिहास तो दूर
वर्तमान में भी कही उनका नाम दर्ज नहीं होता

मगर वत्स !
तुम्हारा तो कुर्सी पर बैठना, चाँदी की थाली में भोजन करना,
चलना-फिरना सब तिथि और समय के साथ
शिलालेखों में दर्ज होता है
गीता ,क़ुरान या बन्दूक से अच्छे दिन नहीं आते
फिर भी हम रोते हुए अपने बच्चे के लिए
धोका देते हैं ख़ुद को कि
अच्छे दिन आएँगे

वत्स !
क्या तुम्हारा अध्यात्मवाद
सूखे कुओं को, सूखी नदियों को जल से भर सकता है ?
नहीं न
धन के लिए तुम्हारी वासना
भूमिपुत्रों का सिर्फ़ क़त्लेआम कर सकती है

मगर हम अभी भी जीवित हैं वत्स !
प्रेम और शान्ति का गीत फुसफुसाते हुए
आँसुओं के साथ
अपने मरे हुए बच्चे की आत्मा की शान्ति के लिए

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