अच्छे दिन की चाह में, घर से कितनी दूर।
बेबस औ असहाय जन, मरने को मजबूर॥
मरने को मजबूर, चले वे घर को अपने।
शहर छुए थे पांव, लिए आँखों में सपने।
स्वप्न हुए सब ध्वस्त, कट रहे उनके दिन गिन।
बेचारे श्रमवीर, माँगते हैं अच्छे दिन॥
अच्छे दिन की चाह में, घर से कितनी दूर।
बेबस औ असहाय जन, मरने को मजबूर॥
मरने को मजबूर, चले वे घर को अपने।
शहर छुए थे पांव, लिए आँखों में सपने।
स्वप्न हुए सब ध्वस्त, कट रहे उनके दिन गिन।
बेचारे श्रमवीर, माँगते हैं अच्छे दिन॥