कोई जरूरी नहीं 
कि जो लोग अच्छे नहीं हैं, 
वे सबके सब बुरे हों,
और जो बुरे नहीं है, 
वे सब के सब अच्छे हों 
कतई जरूरी नहीं है 
कि जो लोग अच्छे हैं, 
वे पूरे के पूरे अच्छे हों 
और जो बुरे है,
वे हद दर्जे के बुरे हों 
बेशक यह खामखयाली है
कि बुरे लोग बस बुरे काम करते हैं
और अच्छे लोग फकत अच्छे 
गिनाए जा सकते हैं बुरे लोगों के अच्छे काम 
और बनाई जा सकती है अच्छे लोगों के 
बुरे कामों की फेहरिस्त 
अच्छाई अच्छों की बपौती नहीं है 
और बुराई नहीं बुरों की चेरी 
इस उत्तर आधुनिक युग में 
विमर्श का विषय हैं
अच्छे लोग और अच्छाई
मगर साधुवाद के पात्र हैं
बुरे लोग
कि उनकी करतूतों से 
इस बेहद बुरे वक्त में बुरी दुनिया में रहते हुए आज भी 
हम करते हैं बुराई से नफरत 
और इससे अच्छा दुनिया में भला 
और क्या कर सकते हैं बुरे लोग?