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अछूत-दान / मुकेश मानस

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अगर दिया ना होता
एकलव्य ने द्रोण को अंगूठा
तब इतिहास कुछ और ही होता

मगर एकलव्य कैसे करता इंकार
मांग रहा था कोई ब्राह्मण
हाथ फैलाकर भिक्षा
किसी अछूत से पहली बार

रचनाकाल:1993