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अजन्म्युं कु जन्म / सुन्दर नौटियाल

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न हो इतक्या निरदै हे माँ ! तेरै गात सी जन्म्युं छ मैं,
कुछ त ममता होलि मैकू बी, माना अजन्म्युं छा मैं |

औण दिदौं माँ, मैं जिन्दा रौण दिदौं माँ,
ये बीज तैं लगुली बणी अपु पर लपटौंण दिदौं माँ;
ऐगी हि तेरी कोख मा, ये लोक मा बि औण दिदौं माँ,
पेट मा जगा दीली जब, घर चौक मा भी औण दिदौं माँ
क्या ह्वे मैं न्याळ नि ह्वे, न्याळी ह्वेगैन,
सारी ख़ुशी लुचिगी जु ट्यस्ट ब्याळी करैन |
न्याळ ह्वै त बुढेंन्दा कु सारु होण थै मैंन,
न्याळी बि त बुढेंन्दा की अंखि-उज्याळी ह्वेगैन ||
मैं जाणदु छ तु येखुली मैं तैं मारी सकदी नी,
पर समाज, घर परिवार समणी कुछ कारी सकदी नी,
बतैक तैं, डरैक तैं, तु दै-दादा समझैक तैं,
क्या मेरी खातीर झिंग्री तैं फिन्कारी सकदी नी ?
तु रौद्र रूप दिखौ अपडु, तु रूठी जा तु माणी ना,
तु नारी शक्ति रूपी छ, इतक्या तु भी जाणी ल्या,
क्या घर, क्या समाज क्या परिवार हम बिना ?
दुर्गा-काली पुज्दारौं, ईं वैष्णों तैं पछाणी ल्या |
अपडु जायूं जाणी मैं इत्क्या भिक्षा दिदौं,
लाड-प्यार दी मैं, बढ़िया शिक्षा दिदौं;
सब ठीक करी द्योलु, नौनों की कमी भरी द्योलु,
बस तु हिम्मत करीक ईं परिक्षा दिदौं |
त्वै गर्व होलू कि मैं तुमारु मान छा,
बेटी त द्वी-द्वी घरों की शान छा,
कु काम छ जू बेटी आज करी सकदी नी ?
अरे ! एक बेटी त कई-कई बेटों समान छा, कई बेटों समान छा ||