भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अजब है माया / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
तराशा गया सूरज
संज्ञा के अनुकूल
सूरज के अनुकूल
तराशती है ख़ुद को छाया
उसकी तलाश में भटकता सूरज
आज नहीं उसे वह
देख भी पाया।
तराशा ख़ुद को जिसके लिए
उसी से छुपी-छुपी अब
रहती है छाया-
प्रेम की क्या अजब माया!