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अजात सम्बोधन ! / निर्मल शुक्ल

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राम करेंगे फिर बहुरेंगे
सम्मोहन गतिमान के ।
 
बहुत संकुचित हुईं हवाएँ
अब सागर
फिर मथा जाएगा
लहरों के अनहद निबंध की
देवालय
फिर कथा गाएगा ।
 
फिर फूटेंगे, अँखुवे जल में
संप्रति जीवन प्राण के ।

अब फिर कोई
सुधा षोडशी
भटकावा लेकर आएगी
संबंधों के कोलाहल को
लम्बी साँसें
दे जाएगी ।
 
तरल बनेंगी, गरल वीथियाँ
पीकर सत्व निदान के ।
 
अभियोजन की
ललित कामना
एक सुपरिचित युग लाएगी
फिर नैतिक शैली चिन्तन की
सृजनशीलता
दोहराएगी ।
 
फिर अजात होंगे सम्बोधन
टूटन ओर थकान के ।