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अजीब दर्द लिये फिर रहा हूँ प्यार में मैं / सिराज फ़ैसल ख़ान

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अजीब दर्द लिए फिर रहा हूँ प्यार में मैं
किसी को छोड़ के आया हूँ इंतज़ार में मैं

ग़रीबी ख़ुद ही परीशान होके कहने लगी
पड़ी रहूँगी भला कब तलक बिहार में मैं

मैं तो काँटा हूँ बहारोँ से मुझे क्या मतलब
कभी खिला ही नहीँ आज तक बहार में मैं

हर तरफ मज़हबी नफ़रत है, सियायत है यहाँ
जिऊँ तो कैसे जिऊँ अब तेरे संसार में मैं