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अठारह / आह्वान / परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़'

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विष के घट फूटे राणा शिर, कनक कटोरे लूटे
मीरा नाँच मगन मन गिरिधर, बिहँसे माधव रूठे
शून्य गगन से मधुर रागिनी बंसी में लहराई
एक बार ही छहों राग छत्तीस रागिनियाँ गाई

सप्तम स्वर के गान! गान पर तेरी मीठी तान!
ताल पर पायल की झंकार! नाँच-नाँच री!
पग न शिथिल हों मग हैं काँटेदार

हास्य-लास्य-ताण्डव आदि का ध्यान रहे न छूटे
मीरा नाँच मगन मन गिरिधर, बिहँस माधव रूहे

चूम रहा जग जहर जाल, जग झूम रही अमराई
गाड़ो ऐसा राग के नाँचे रूप विराट कन्हाई
गोप कुँवर हलधर धर नाँचे हर की मूँठ सवाई
राधा नाँचे, रुक्मिणी नाँचे यशु मति माई

याद रहे पर ताल-तान-लय, मीरा कभी टूटे
मीरा नाँच मगन मन गिरिधर, बिहंस माधव रूहे