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अतिवृष्टि / कविता पनिया
Kavita Kosh से
जब समय अतिवृष्टि करता है
सबसे पहले खतरे के निशान डूबते हैं
फिर भय के डूबने की बारी आती है
निर्भय फिर ऊपर आता है तैरता हुआ
अतिवृष्टि के सारे खतरों से जूझता हुआ
अपने हाथ पैर मारता है
उस अथाह जल राशि के बीच ढूँढता है
अटल टीला जिसे अतिवृष्टि डूबो न सकी
जिस पर एक वृक्ष की छाया है
उसके पत्तों से बारिश का पानी रिस रहा है
सूर्योदय के साथ जल स्तर का नीचे होना
निर्भय की निडरता और अटल आशावादी होने का संकेत है
जिसने अतिवृष्टि की विपरीत दिशा में उम्मीद का टीला ढूँढा हो