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अतीत / शिवनारायण / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
नारियल गाछी सें झाँकतें
सुरुज के रोशनी सें
लबालब दर्जनो आँख
एक्के बारगी छलछलाय पड़ै छै
जेना
टीशन सें सरकतें
रेल के खिड़की सें
एक्के साथ
कत्तेॅ-कत्तेॅ जोड़ी हाथ।
सूरज
ठीक ऊपर
चढ़ी चुकलोॅ छै
आरो
कन्याकुमारी सें मुम्बई भागतें
ई ‘जयन्ती जनता’
चिकन्नुर केॅ
बड्डी पीछू छोड़ी चुकलोॅ छै।