भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अतीत / शिवनारायण / अमरेन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नारियल गाछी सें झाँकतें
सुरुज के रोशनी सें
लबालब दर्जनो आँख
एक्के बारगी छलछलाय पड़ै छै
जेना
टीशन सें सरकतें
रेल के खिड़की सें
एक्के साथ
कत्तेॅ-कत्तेॅ जोड़ी हाथ।

सूरज
ठीक ऊपर
चढ़ी चुकलोॅ छै
आरो
कन्याकुमारी सें मुम्बई भागतें
ई ‘जयन्ती जनता’
चिकन्नुर केॅ
बड्डी पीछू छोड़ी चुकलोॅ छै।